जिज्ञासु परिंदा

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जिज्ञासु परिंदा खुले गगन में एक परिंदा,उड़ता जाए अकेला। ढूंढ रहा है मंज़िल अपनी,पीछे छोड़ झमेला।।     उसे आस, विश्वास उसे,निश्चित मंज़िल वह पाएगा,    नहीं थकेगा,नहीं थमेगा,खाली हाथ न ...

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